स्वतंत्रता की हीरक जयंती का श्रीगणेश मंगलमय हो रहा।
तुमुल सप्तस्वर जयघोष,वंदन,मातृभूमि का अपनी हो रहा।।
अधरों पर है छाई मृदुल-मुस्कान पर आँखें भी हैं भीगी हमारी।
एक ओर अप्रतिम उल्लास तो वही शहीदों का स्मरण हो रहा।।
रामराज्य परिकल्पना के इंद्रधनुषी ताने-बाने बुने जा रहे।
नव-सृजन का अब सिलसिला निरंतर गतिमान हो रहा।।
तिमिर घटाटोप गहन जब राहु सा ग्रसने हमें जा रहा था।
कुछ पुरुषार्थ कुछ देवयोग नव-उषा का पदार्पण हो रहा।।
अतः आओ राष्ट्र निर्माण का नव-संकल्प हिलमिल आज लें। जब विधाता भी मार्ग प्रशस्त करने को हमारे आतुर हो रहा।।
जाति-धर्म,ऊॅच-नीच के भेदभाव मिटा उर से समस्त अपने।
दिखा दें कुशल नेतृत्व भारत हमारा जगद्गुरु प्रस्तुत हो रहा।।
@नलिनतारकेश
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