आषाढ़ शुक्ल एकादशी श्री गणेश चातुर्मास का हो रहा। शयन क्षीरसागर शेषशय्या,श्री हरि का तभी तो हो रहा।।
विचारो पर क्या कभी भी क्षणिक,ईश शयन कर सकेगा?
वह तो है सदा को जागृत,बस कौतुक नया एक कर रहा।।
वस्तुतः मायाजाल तोड़ भोग-विलास त्यागें जीव सभी। बस इसकी ही प्रेरणा के लिए वो परीक्षा हमारी ले रहा।।
आचार-विचार सभी शुद्ध,वातावरण अनुरूप ढलें हमारे।
मात्र वह इसके लिए,चातुर्मास का विधान ऐसा रच रहा।।
साधना,दान,जाप का सभी में,यथाशक्ति कर्म चलता रहे।
त्याग,दया,प्रेम की हमें सीख,इसी बहाने वो हमें दे रहा।।
सृष्टि का आधार तप है,जो डिगाती नहीं धुरी जरा इसकी।
इसी बल-विवेक को अंतर्मन हमारे,जागृत प्रभु कर रहा।।
आत्मविश्वास से भरे हम,उसीके अंश हैं यह सत्य जान लें।
स्वयं को छिपा निमिष मात्र,कसौटी पर अपनी कस रहा।।
@नलिनतारकेश
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