परत दर परत कितने चेहरे छुपाए है आदमी।
खुद को खुद के दीदार से बचाए है आदमी।।
अंधेरों में बार-बार बहकने के बावजूद भी।
जाने क्यों उसी ओर कदम बढ़ाए है आदमी।।
रास्ते हैं बंद सारे अपनी ही बेवफाई के चलते।
उसी ओर फिर भी टकटकी लगाए है आदमी।।
यार जानता है सब,इतना भोला तो नहीं है।
जमीर भी अपना मगर बेच खाए है आदमी।।
फना होती है बुलबुलों के मानिंद यहाँ हर शै।
झूठी शानो-शौकत फिर भी जताए है आदमी।।
शागिर्द भला बनाइए किसी को काहे आजकल।
याद "उस्ताद" को छठी का दूध दिलाए है आदमी।।
@नलिनतारकेश
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