जाने फिर क्यों
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जो भी है अतिक्लिष्ट,गूढ वही सबको आता पसंद है।
जाने फिर क्यों सीधा-सरल बस,कहने को ही पसंद है।। यद्यपि बनाता तो काम सारा हमारा आत्मविश्वास है।
जाने फिर क्यों सबके सामने,झोली फैलाना पसंद है।। सादगी,दयालुता आदि सभी,श्रेष्ठ व्यक्तित्व के भाव हैं।
जाने फिर क्यों सबको ओढ़ना,बनावटीपन ही पसंद है।।
हर दिन बड़ी सहजता से,नून-रोटी से कट सकता है।
जाने फिर क्यों आदमी को इतना द्वन्द्व-फंद पसंद है।। देता है ईश्वर सदा हमको जो भी सर्वश्रेष्ठ उपयुक्त है।
जाने फिर क्यों हमें अपना,बस ये छुद्र भाव पसंद है।।
दो अक्षर बस एक राम नाम,भरता आनंद-परमानंद है।
जाने फिर क्यों सदा हमें,दुरूह जाप ही आता पसंद है।।
नलिन @तारकेश
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