जीते-जीते मरना आ जाए तो क्या कहना।
रोते-रोते हंसना आ जाए तो क्या कहना।।
दोनों हाथ खूब बटोरी हमने दौलत दुनिया की।
इन्हीं हाथों उलीचना आ जाए तो क्या कहना।।
राग-द्वेष,काम-क्रोध बहुत सताते जीवन भर।
वश में इनको करना आ जाए तो क्या कहना।।
अपनी खातिर तो हम भरते ही रहते सांसे जीने को।
गैरों के उर में प्राण फूंकना आ जाए तो क्या कहना।।
वो जो रहता तेरे-मेरे,हम सबके ही भीतर में।
हमको उसे देखना आ जाए तो क्या कहना।।
नलिन "तारकेश "
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