हर कदम राह जिंदगी की बड़ी ही रपटीली है।
संभल कर तभी तो यहां चलने की जरूरत है।।
देखना स्वप्न तो अच्छा है,खुली या बंद आंख से।
सतत पर मृग-मरीचिका से बचने की जरूरत है।।
सारे के सारे रिश्ते-नाते टिके हैं गुणा-भाग पर केवल।
नाता जो एक अटूट बस उसे ही साधने की जरूरत है।।
सोच तेरी,मेरी हो तो सकती है अलग कभी-कभी।
मनभेद हो न कभी बस ये विचारने की जरूरत है।।
सिंगार तो खूब करते रहे ताउम्र इस नश्वर देह का हम।
अब अजर-अमर इस रूह को संवारने की जरूरत है।।
नलिन "तारकेश"
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