लगन अब तो ऐसी लगी कि छूटती नहीं।
उसके सुमिरन की माला अब टूटती नहीं।।
यदि हो जाए इकराम* एक बार को भी उसका।*अनुग्रह
दुनियावी चाहतों की आरजू कोई रहती नहीं।।
जब कर ही डाला बेभाव खुद को उसके हवाले।
हथेली किसी के आगे बख्शीश को खुलती नहीं।।
अकीदा* जिसका हो गया बस एक नाम पर ही तेरे।*भरोसा
रंजो गम की फिर बरसात बिगाड़ कुछ सकती नहीं।।
बड़ा अजब है "उस्ताद" ये कायनात का सच में।
शागिर्दी बगैर इबादह* के इसकी मिलती नहीं।।
*पूर्ण समर्पण
नलिन "उस्ताद "
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