जो जानते पता उसका वो बता सकते नहीं।
आलिम*,फाजिल* उसे जरा भी जानते नहीं।।*ज्ञानी
जो चाहे लाख जोर आजमाइश कर ले कोरे जुमलों से।
बगैर सीरत*और सादगी कदम उस तक पहुंचते नहीं।।*सद्गुण
बांकी अदाओं से चुपचाप कत्ल करता है वो तो अपनी।
सिवा लेने के सजदे करने को हम कुछ भी बचते नहीं।।
अहसास है सिफत हमारे लिए वो दूर या कि पास से।
जो नजरें ही चार हो गईं तो कहीं के हम रहते नहीं।।
हैं बड़े दिखते तिलिस्म महफिल में परवरदिगार की।
होश उड़ते "उस्ताद" के,मदहोश यहाँ भटकते नहीं।।
नलिन @उस्ताद
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