#कालचक्र,#कर्म,#कृपा
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卐 ॐ 卐
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभम। निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
माघ मकर गति रवि जब होई।तीरथपतिहिं आव सब कोई।। देव दनुज किन्नर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनीं।। पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।श्री रामचरित मानस के अनुसार यह प्रसंग 4 घाटों में से एक प्रयागराज पर ऋषि भारद्वाज और ऋषि याज्ञवल्क्य जी के मध्य रामकथा चर्चा से पूर्व का है।सो उन्हीं सूर्यदेव ने पुनः 14 जनवरी 2018 को मकर राशि में प्रवेश के साथ ही उत्तरायण का भी शुभारंभ किया।प्रयागराज में माघ स्नान की परंपरा का निर्वाह करते हजारों लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ संगम पर उमड़ी।और भारतीय सनातन आस्था में गहरी डुबकी लगा वो अपने शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक ताप को शीतलता प्रदान करने लगी TV पर इस दृश्य को देखते हुए मुझे वर्ष 2001 का कुंभ पर्व स्मरण हो आया जब ईश्वर कृपा से इलाहाबाद में हुए इस महान आयोजन का साक्षी बन सका था। यह मेरे लिए बड़ा अभूतपूर्व था कई मायनों में। एक तो प्रयागराज तीर्थ के दर्शन दूसरे संगम में स्नान तीसरे कुंभ के विशिष्ट पवॆ पर स्नान का सौभाग्य।वैसे एक अन्य बात थी जिसका पता मुझे संगम तट पर पहुंचकर ही चला।दरअसल मेरी छोटी बहन सौभाग्यवती भावना (चाचा जी की सुपुत्री)और उसके पति व सास कुंभ स्नान हेतु जा रहे थे। साथ में राजू छोटा भाई (चाचा जी का सुपुत्र)भी था।वे लोग क्योंकि मारुती वैन करके जा रहे थे तो मुझे भी साथ चलने का सुनहरा प्रस्ताव दिया गया। "अंधे को क्या चाहिए"सो तीर्थ स्थल जाने के नाम से ही अरमानों को पंख लग गए। रात्रि वहीं उनके घर रुका और सुबह यात्रा शुरू हो गई।यात्रा के दौरान पता चला कि उन लोगों की मिलिट्री के एक बड़े अधिकारी से मित्रता थी।उनके ही बतौर मेहमान हमारी व्यवस्था वहां की गई थी। कुंभ स्नान हेतु जनसैलाब उमड़ा था सो हमारी खातिरदारी के लिए प्रभु की कृपा एक अलग सी व्यवस्था हेतु आतुर थी।हमारी गाड़ी को एक अधिकारी अपने मागॆदर्शन में कुंभ क्षेत्र के भीतर अमिताभ बच्चन द्वारा सासंद निधि से बनाए घाट से होते हुए संगम तट तक ले गये। जहां अनेक नावें तैरते और कुछ तट पर दिख रही थीं।गंगा जी,यमुना जी और अंतर्निहित सरस्वती जी के मिलन स्थल संगम को हमने सादर प्रणाम किया।सूर्यदेव अभिजीत नक्षत्र में रहे होंगे ऐसा अनुमान है क्योंकि मध्य आकाश में स्थित होने के बावजूद शिशिर ऋतु के चलते आप (सूर्यनारायण)मृदुल मुस्कान से हमारा स्वागत कर रहे थे।मैंने उन्हें हाथ जोड़ा और अपनी कृतज्ञता व्यक्त की,सूर्य गायत्री और द्वादश नाम स्त्रोत से।अब तक मिलिट्री के अधिकारी ने हमारे लिए नाव की व्यवस्था कर दी थी। सभी लोग नाव में सवार हो नदी के उस भाग में थे जो संगम कहलाता है।यहां पानी मेरे घुटनों से भी कुछ कम ही था।मल्लाह ने हमें डुबकी लगा लेने को कहा। "बड़े भाग मानस तन पावा" तो उसको ही चरितार्थ करने का एक सौभाग्य इस रुप में भी हमें मिल रहा था।तो "फिर विलंब केहि कारण कीजिए"। जमकर परिवार के सभी सदस्यों का नाम स्मरण करते हुए हम लोग डुबकी लगाते रहे।सारी प्रक्रिया पश्चात जब सूर्य देव के किरण रुपी सतरंगे तौलिए से शरीर को मैं पौंछ ही रहा था कि तभी तीन माह पूवॆ प्रातः कालीन देखे एक स्वप्न का दृश्य चलचित्र की तरह आज की घटनाओं से मेल खाता आंखों में तैरने लगा।मैंने इत्तफाक से उस स्वप्न का जिक्र पहले-पहल जागकर राजू से उसी दिन किया था क्योंकि उसे भी स्वप्न में साथ देखा था सो झट से जब संगम तट पर इसका जिक्र पुनः उससे किया तो वह भी रोमांच की नदी में डुबकी लगाने को विवश हो गया। फिर हम ईश्वर की लीला को अलग-अलग रूपों में व्याख्यायित करते बतियाते आगे बढे।एक स्थान पर लगे सूचना-पट्ट को अधिकारी ने हमें दिखाया जहां लिखा था की प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद जी ने यहां माघ माह में एक माह का कल्पवास किया था। कल्पवास की एक विशिष्ट मान्यता हमारे ग्रंथों में बखानी गयी है।मैंने उन ऋषि तुल्य प्रथम राष्ट्रपति जी को भी प्रणाम किया जिनका यह सूचनापट भी मेरे स्वप्न का हिस्सा बना था। वैसे आज यह लिखते हुए मैं सोचता हूं कि कालचक्र की ये नदी उस समय से बहती हुई आज कितने वक्र,प्रदुषित रुप में बह रही है कि वतॆमान में हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी, सेकुलरवादी इस तरह की घटना यदि आज होती तो कितना वितंडावाद खड़ा करते ये किसी से ढका-छुपा नहीं रहा है। खैर "कहां राजा भोज कहां गंगू तेली"। इनका जिक्र करके अपना और आप सुघी पाठकों का जायका बिगाड़ने का मेरा कोई इरादा फिलहाल नहीं है। अगली चर्चा में मिलते हैं तब देखते हैं।अभी इतना ही।जय माॅ गंगे।
@नलिन #तारकेश
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