राम तुमने द्रवित हो मुझको
दे तो दी हैं चरण-पादुका
पर मैं तो नहीं योग्य भरत सा
मुझे कहाँ आता है,सार संभाल करना।
योग्यता भी है,किंचित मात्र नहीं
पर दिया है दायित्व तो आकर
पूरा निभा दो अब साथ मेरा।
काम टेढ़ा है ये तो बहुत मगर
पर मैं जानता हूँ यदि आ जाए
तू सुधारने में यदिमुझे अगर
तो हो ही जाऊँगा कभी न कभी
निर्मल मति "नलिन" अवश्य।
No comments:
Post a Comment