दुनिया जानें नफरतों से भर रहे भला क्यों?
जानबूझ कर देखो खुद को रहे बहला क्यों?
महक उठा है तेरे नक़्शे-पा से ज़र्रा-ज़र्रा।
मेरी चौखट से बस गुरेज़ तुझको भला क्यों?
कली जो भीग गई पहली-पहली बरसात में ही।
पत्ते कहते चमन हमसे करता घपला क्यों ?
हौंसले से हथेली जब उगा लेते हैं लोग सरसों।
कदम दर कदम जोश भरा बढ़ने से हिचक बतला क्यों ?
बाँहों में सिमट कर आज बरस जाओ मेरी।
मौसम है सुहाना फिर दिल नहीं पिघला क्यों ?
मुसाफिर हो जिंदगी की राह में "उस्ताद" तुम तो।
कस्तूरी भीतर फिर उदासी का मसला क्यों ?
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