श्री गणेश प्रथम पूज्य तुम, कृपा करो विशेष।
श्री साईं चरित कहूँ जो हरे पाप भय क्लेश।।
जय श्री साईं जय भगवंता,तुम हो साक्षात गुरु रूपा।
अद्भुत गूढ़ रूप त्तुम्हारा,जानूँ कहाँ बिन कृपा प्रसादा।
सो अब करो साधन कुछ ऐसा,गर्व करूँ बन जौऊं चेला।
जगत प्रपंच घेरे बहु भांति,मैं तू हूँ फिर और अनाड़ी।
बार-बार उकसाए मोहे माया,छल,कपटी,दम्भी यह काया।
धरम -करम सब ही छुट जाते,आलस-मत्सर प्रीत बढ़ाते।
काम-क्रोध,मद अवगुण नाना,भीतर-भीतर सेंध लगाते।
तू अब करो विलम्ब न देवा,बन जाओ अवलम्बन मेरा।
मैं तुमको तुम मुझको देखो,भाव रहे फिर कौन अधूरो।
श्री चरनन प्रीति लग जाये,जीवन सफल मेरो होइ जाये।
तुम तो प्रभु जगत के स्वामी,व्यथा हरो अब अन्तर्यामी।
कोटि-कोटि रवि तेज तुम्हारा,ह्रदय मृदुल "नलिन"सा प्यारा।
मैं क्यों रह जाऊँ अकेला,हाथ पकड़ लो अब तुम मेरा।
श्री साईं सद्गुरु तुम,खोलो ज्ञान द्वार।
राह कठिन भवसागर की उतरे बेडा पार।।
राह कठिन भवसागर की उतरे बेडा पार।।
वेष फ़कीर साईं तेरा,मुझे मन भाया।
अलख रमाई "शिर्डी"में,वेष बदल कर आया।।
अलख रमाई "शिर्डी"में,वेष बदल कर आया।।
तेरो रूप तू ही भेद जाने,मुझे प्रीत रस दे दे।
नाटक करे भिक्षुक के जैसे झोली मेरी भर दे।।
नाटक करे भिक्षुक के जैसे झोली मेरी भर दे।।
अवतारों में अवतार श्रेष्ठ, तू तो है एक साईं।
विमल बनाने आया मुझको फिर विलम्ब क्यों साईं।।
चिलम में जलें अवगुण सारे,कश ऐसे तू ले ले।
"उदी"काया-कल्प करे मेरा,सब विकार तू हर ले ।।
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