उसका चेहरा न फक पड़ा
न उसे कोई गिला हुआ
जबकि यह सब उसके साथ
होना ही चाहिए था।
उसने मेरा क़त्ल किया था
पर वो मुस्कुराता
राम-राम करता बोला
भूत भैय्या भले-चंगे तो हो?
भूतों की लाइफ
एन्जॉय तो कर रहे हो?
मैंने कहा आप बड़े बेशर्म हैं
मार कर भी मुझे चैन नहीं पाते हैं।
वो हंसी को थोड़ा और घोंटते
आँखों में आँखें डाल बोला
जनाब मरों को मारा कैसी शर्म
मरे पर दो लात से कैसा फरक
तुमको महंगाई ने मारा
तुम चुप रहे
तुमको लीडरों ने धमकाया
तुम खामोश रहे
तुमको पुलिस ने लतियाया
तुम चुपचाप सहते रहे
और जब मैंने कायदे से तुमको
मार दिया,या कहो उद्धार किया
तो तुम उलटे मुझ पर ही
अकड़ते,उबलते फिर रहे हो।
अरे जनाब कहाँ तो अहसान मानते
वसीयत मेरे नाम कर जाते।
देखो तिल -तिल मरने से बचाकर
मोैत के घाट एक बार में उतार दिया।
सोचो,क्या ये नेक काम तुम
भला कहीं खुद कर पाते।
अरे लल्लूलाल तुम तो
थोड़ा रो-धो के,खुद पर तरस खाके
फिर पिसने पर मुस्तैद हो जाते।
हमने इतना सुना तो उन्हें
झट से गले लगा लिया।
हमने कहा देखिये गुरूजी
हम नादान आपकी महिमा क्या समझते
अब तो दक्षिणा में यही हैं कर सकते
कि आपको भी मौत के घाट उत्तर देते हैं।
वो इस बार चौंका और संजीदा भी हुआ
फिर नम्र लहज़े में कहा
देखो अब तुम मर के भूत हो गए हो
अब तुम कहाँ मुझे मार सकोगे।
दरअसल भूतों के प्रधान
और आदमियों के प्रधान में
एक्ट,"एक्स-एक्स" -४२० के तहत
अपने मूलभूत गुणों का
आपस में इंटरचेंज हो गया है.
सो अब हर आदमी, भूत
और हर भूत, आदमी की तरह
सोचेगा,समझेगा और काम करेगा।
वैसे ये सब टॉप-सीक्रेट है
पर तुमको बता रहा हूँ।
और हाँ ,एक बात और
भूतों के हजार प्रलोभन पर भी
कुछ बाकी रही लाज-शर्म से
आदमी और भूत का लेबल हमने
आपस में एक्सचेंज नहीं किया है।
इसलिए अब तुम लोग शांति से रहो
क़त्ल,आगज़नी,बलात्कार सब हमपे छोड़ो।
मैंने अपने गुरु की चरण-धूलि ली
एक महान सभ्यता,आदम सभ्यता का
वो छोटा ही सही,चलता पुर्जा था
उसका आशीर्वाद,खाकसार के लिए जरूरी था।
मैंने उसका बहुत अहसान जताया
और शब्दों से भी व्यक्त किया
इसपर गर्व से वो मेरी पीठ ठोकते बोला
चलो अब मुझे भी पूरा यकीं हो गया है
कि तुम मर कर भूत बन गए हो।
वर्ना आदमी का जरा भी अंश रहता
तो तुम्हे फिर कहाँ भी एक रत्ती
अहसान और धन्यवाद देना याद रहता।
न उसे कोई गिला हुआ
जबकि यह सब उसके साथ
होना ही चाहिए था।
उसने मेरा क़त्ल किया था
पर वो मुस्कुराता
राम-राम करता बोला
भूत भैय्या भले-चंगे तो हो?
भूतों की लाइफ
एन्जॉय तो कर रहे हो?
मैंने कहा आप बड़े बेशर्म हैं
मार कर भी मुझे चैन नहीं पाते हैं।
वो हंसी को थोड़ा और घोंटते
आँखों में आँखें डाल बोला
जनाब मरों को मारा कैसी शर्म
मरे पर दो लात से कैसा फरक
तुमको महंगाई ने मारा
तुम चुप रहे
तुमको लीडरों ने धमकाया
तुम खामोश रहे
तुमको पुलिस ने लतियाया
तुम चुपचाप सहते रहे
और जब मैंने कायदे से तुमको
मार दिया,या कहो उद्धार किया
तो तुम उलटे मुझ पर ही
अकड़ते,उबलते फिर रहे हो।
अरे जनाब कहाँ तो अहसान मानते
वसीयत मेरे नाम कर जाते।
देखो तिल -तिल मरने से बचाकर
मोैत के घाट एक बार में उतार दिया।
सोचो,क्या ये नेक काम तुम
भला कहीं खुद कर पाते।
अरे लल्लूलाल तुम तो
थोड़ा रो-धो के,खुद पर तरस खाके
फिर पिसने पर मुस्तैद हो जाते।
झट से गले लगा लिया।
हमने कहा देखिये गुरूजी
हम नादान आपकी महिमा क्या समझते
अब तो दक्षिणा में यही हैं कर सकते
कि आपको भी मौत के घाट उत्तर देते हैं।
वो इस बार चौंका और संजीदा भी हुआ
फिर नम्र लहज़े में कहा
देखो अब तुम मर के भूत हो गए हो
अब तुम कहाँ मुझे मार सकोगे।
दरअसल भूतों के प्रधान
और आदमियों के प्रधान में
एक्ट,"एक्स-एक्स" -४२० के तहत
अपने मूलभूत गुणों का
आपस में इंटरचेंज हो गया है.
सो अब हर आदमी, भूत
और हर भूत, आदमी की तरह
सोचेगा,समझेगा और काम करेगा।
वैसे ये सब टॉप-सीक्रेट है
पर तुमको बता रहा हूँ।
और हाँ ,एक बात और
भूतों के हजार प्रलोभन पर भी
कुछ बाकी रही लाज-शर्म से
आदमी और भूत का लेबल हमने
आपस में एक्सचेंज नहीं किया है।
इसलिए अब तुम लोग शांति से रहो
क़त्ल,आगज़नी,बलात्कार सब हमपे छोड़ो।
मैंने अपने गुरु की चरण-धूलि ली
एक महान सभ्यता,आदम सभ्यता का
वो छोटा ही सही,चलता पुर्जा था
उसका आशीर्वाद,खाकसार के लिए जरूरी था।
मैंने उसका बहुत अहसान जताया
और शब्दों से भी व्यक्त किया
इसपर गर्व से वो मेरी पीठ ठोकते बोला
चलो अब मुझे भी पूरा यकीं हो गया है
कि तुम मर कर भूत बन गए हो।
वर्ना आदमी का जरा भी अंश रहता
तो तुम्हे फिर कहाँ भी एक रत्ती
अहसान और धन्यवाद देना याद रहता।
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