मेरी फितरत कोई हंसी-खेल नहीं ये समझना होगा।
जीने के लिए मुझमें डूब के तुझे खुद को मिटना होगा।।
जिंदगी के रंजोगम हर सुबह-शाम निभाते हुए।
खुद के आईने ही में खुद को संवारना होगा।।
दोस्त,दुश्मन के खाँचों से अलग हटकर।
अब खुद का एक चेहरा तलाशना होगा।।
बाँहों में समा हमनशीं बनाने से भला क्या होगा।
बटोरने को मोती तुझे समंदर तो नापना होगा।।
माना हम तेरे प्यार के लायक नहीं बने।
किसी से दिल लगा मगर तुझे तो रहना होगा।।
रोशनी दिखेगी कहाँ ऐसे तुझे परवरदिगार की।
ऑखों में खुद को"उस्ताद" हर वक्त सहेजना होगा।।
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