Tuesday 10 June 2014

ग़ज़ल -38 ददॆ पीते हुए

















ददॆ पीते हुए तो हमें यारों जमाने हुए।
गजल लिखने के जो सभी बढके बहाने हुए।। 

चलो बात उनसे कुछ हो तो सकी आंखिर।
वरना तो मिले उनसे हमें जमाने हुए।।

मर-मर के भी जीता है यूँ तो आम आदमी।
बात तो है मगर क्यों ये भला पैमाने हुए।

रदीफ़,काफ़िये की नहीं पहचान जरा मुझे तो।
बहाने से ग़ज़ल के जख्म कहीं तो दिखाने हुए।।

पढ़नी तो होगी ही रूखी ग़ज़ल "उस्ताद" मेरी।
मंझधार में साहिल जिन्हें जब कभी तलाशने हुए।।

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