जीवन-मंथन तब मिलता मक्खन
##################
कहीं कनक-घट गरल अपार भरा है।
कहीं मृण-भांड पीयूष पटा दिखता है।
हे परमेश्वर सारा मायावी संसार ये तेरा।
उलटबांसी सा सच में अबूझ बड़ा है।।
कहीं विलास का उत्कर्ष बड़ा है।
कहीं खाद्य का अकाल पड़ा है।
दो दिन का यह दुनिया का मेला।
हर पल अद्भुत रोमांच सना है।।
कहीं नवागत का मधुर राग सुना है।
कहीं विछोह का शोक रिस रहा है।
आवागमन के रहस्यमय अनुष्ठान का।
हमको कहाँ अभिप्राय ज्ञात हुआ है।।
कहीं तार-तार रक्त संबंध हुआ है।
कहीं अंजानों से दिल का तार जुड़ा है।
भांग-धतूरे का प्याला पीकर कुछ ज्यादा।
लगता है प्रभु तूने यह सारा संसार रचा है।।
No comments:
Post a Comment