दर्द सुन ले बस यहाँ एक आदमी,आदमी का।
फकत इतनी ही चाहत से है अपना तो वास्ता।।
जुल्फों के घने जंगलों में खो गए जब हम।
मिलना कहाँ था कहो फिर कोई भी रास्ता।।
बेकरारी तो दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है।
जाने उनसे कब हो सकेगा आमना-सामना।।
तेरा शहर भी ढल गया है अब तो तेरे ही रंग में।
देता नहीं तवज्जो जब तक न हो कोई फ़ायदा।।
"उस्ताद" हम भी कब तलक करते उनकी चिरौरी।
आंखिर कभी तो सही जागना ही था जमीर अपना।।
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