Wednesday 24 August 2022

454: ग़ज़ल

अमां आओ यार जरा देख भी लो नजारे।
जमीं से आसमां बिखरे जो हैं ढेर सारे।।

छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ तलाशो।
बड़े मुद्दों को रखो जरा तुम किनारे।।

बमुश्किल बारिश झमाझम हो रही है।
आओ जरा छत पर खुलकर नहालें।।

गमों से पाला तो पड़ना है हर रोज तय।
जरा दे जुम्बिश लबों को खिलखिलाएं।। 

जिंदगी एक ढर्रे पर चलती नहीं फॉर्मूले सी।
जोड़ना,घटाना "उस्ताद" चलो भूल जाएं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

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