किसी को भी यूँ तो खौफ में रखना अच्छा नहीं है।
बेवजह मगर किसी को भी सताना अच्छा नहीं है।।
अगर फेंकोगे पत्थर तो आएंगे एक रोज तुम्हारे ही पास।
इल्ज़ाम यूँ हर घड़ी आसमान पर थोपना अच्छा नहीं है।।
दिले आईने में जरा अपना भी कभी अक्स देखा करो।
गैरों पर यूँ बात-बेबात उंगलिया उठाना अच्छा नहीं है।।
देखो था न अपने ही हुनर पर नजरस़ानी का वहम बहुत तुमको।
मान लो यार अब ये भी कि ज्यादा इतराना होता अच्छा नहीं है।।
हम तो पीते रहे हैं उस्ताद सब्र का जाम मुद्दतों से।
हो गया बहुत अब इसे और आजमाना अच्छा नहीं है।।
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