चलो आज फिर एक ग़ज़ल लिखी जाए।
दर्द की सिलवटें कुछ और मिटा दी जाए ।।
बहुत गुमान था जिसकी दोस्ती का हमको।
अब उसकी ही सबसे बेवफाई छुपाई जाए।।
कोई सोता नहीं रात भर इतने पेचोख़म* हैं जिंदगी में।
*मुश्किल हालात
करीब जाकर अब जरा लोरी तरन्नुम* में सुनाई जाए।।*गाकर
रिमझिम बौछारें जब भिगोती हैं दरीचे* से आकर।*खिड़की
संग यार दोस्तों के शम-ए-महफिल जलाई जाए।।
हर किसी को है गुमान कि वो ही "उस्ताद" है।
पहले चलो ये खुमारी खुद की ही उतारी जाए।।
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