किसी की जिंदगी को क्या खाक हूँ बदल सकता मैं।
चाहत है बस लबों को कुछ देर को खिला दूं जरा मैं।।
हर शख्स जेहन में अपने घूमता है मनों बोझा लादे हुए।
क्या कभी कम कर सकूंगा तोला-माशा भी उसका मैं।।
अलहदा है हर कोई और यूँ कहो तो कोई भी नहीं।
अजब ये भूलभुलैया को कभी ना समझ पाया मैं।।
उफनते जाम भी संभल जाते हैं हलक में जाने के बाद। संभलता नहीं मगर जब छलकने पर आता है मेरा मैं।।
खुदा का बड़ा रहमो-करम है जो नजूमी हुआ "उस्ताद"।
भरके हौसला जुगनू ए रोशनी का मुस्तकबिल बनाता मैं।।
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