राधा ने प्रीत की सुधा-रस सौगात जो कृष्ण को सौंप दी।
अधर-धर,वंशी-धुन,कृष्ण ने वह सहज विश्व को सौंप दी।।
प्रीत की अपरिमित,अकूत बौछार से सृष्टि ओर-पोर जब भीग गई।
प्रकृति-पुरुष की परमानंद प्रीत से पोर-पोर वह तो फिर भीग गई।।
समस्त जड़-चेतन जगत की भाव-दशा,चेतन- जड़ में परिवर्तित हो गई।
अकल्पनीय,अकथनीय,असमंजस भरी मनो- दशा सबकी अजब हो गई।।
ठगे-बौराए सभी, कुछ बुझते कुछ अनबूझे से रास-रंग आकंठ डूब गए।
पहचाने कौन-किसे,जड़-चेतन सभी समवेत राधा-कृष्ण स्वरूप डूब गए।।
देखो अलख जग गई प्रीत की,ऐसी मदहोशी सर्वत्र सृष्टि में छा गई।
राधा-कृष्ण,कृष्ण-राधा नाद-ध्वनि गूंज-गूंज कण-कण में छा गई।।
भावावेश रस-ताल भरी लास्य-गति प्रतिक्षण ही जब बहने लगी।
उमंग,उल्लास,उध्वॆ-प्रीत,उत्प्लावन-मति "नलिन"बहने लगी।।
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