Wednesday 26 December 2018

गजल-63 तुम्हारा जब भी कभी

तुम्हारा जब भी कभी नाम लिया हमने।
खुद पर ही बड़ा एक अहसान किया हमने।।                                                          

हाल दिल का लिख तो दिया तुझे हमने।
ख़्वाब कुछ तो नया सजा लिया हमने।।

ले हाथों की सब लकीरों को मिटा चुके हम।
बता क्या ना किया तेरे लिए छलिया हमने।।

मिटाने को दूरियां सोच लेकर जब हम बढे।
महज मुहब्बतों का वास्ता तब दिया हमने।।

बना कर तुझको अपना हमकदम देख यारब।
अंगूठा दिखाया नसीब को बढिया हमने।।

सिले लबों को खोल कर "उस्ताद" आज।
बहा दिया मुहब्बत का दरिया हमने।।

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