फूलों की बात करते हो और कांटों से बचते हो।
यार तुम भी जाने क्यों असल जिंदगी से डरते हो।।
अपने छालों की शिकायत तुम बेवजह करते हो।
दिली आशना की उससे जो अगर बात रटते हो।।
वो ना मिला तो क्या जिंदगी दोजख* बनाओगे।*नरक
आगे बढ़ क्यों नहीं पत्थर मील के गाड़ते हो।।
बहुत सफाई से नापाक*खून से रंगे हाथ।*अपवित्र
दस्ताने उतार मेहंदी रचे हाथ कहते हो।।
हकीकत तो क्या ख्वाब में भी अब नहीं दिखते।
रिश्ते बेफजूल भला क्यों ऐसे जोड़ते हो।।
इस कदर उसके तसव्वुर* में दिन-रात रहने लगे।*कल्पना
आईना देख"उस्ताद"खुद के सजदे करते हो।।
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