किसी तरह मन को हमने दिया बहला अपने लिए।।
वो तो चाहता ही था चांद रुपहला अपने लिए।।
कहां किसी के दिल की धड़कनों को वो गिनेगा।
कमबख्त वो तो है सदा उतावला अपने लिए।।
सिखाया ही नहीं गया ना सुनना बचपन से उसे।
सो हक में ही वो तो चाहता फैसला अपने लिए।।
मुफलिसी के दौर में दिन-रात चबा लोहे के चने।
तिनके-तिनके जोड़ बनाया घोंसला अपने लिए।।
अब रहे सबके दिलों में चैनो अमन सदा। "उस्ताद" क्या चाहिए हमें भला अपने लिए।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment