लोग आते हैं घर के अब बंजारों की तरह।
पाहुन* भी आते हैं कहां दिलदारों की तरह।।
*मेहमान
जमाने की लगी देखो हवा इन बादलों को भी।
बरसते कहां डोलते हैं बस आवारों की तरह।।
बहती रही दरिया ए जिंदगी हमारे ही सहारों पर।
रहे कोरे भीगे कहां जरा भी हम किनारों की तरह।।
मौत आ गई अब और कितनी बार आएगी भला।
लुत्फ लेंगे असल अब आसमां से सितारों की तरह।।
मां बाप के साए से महरूम मासूम बचपन।
लावारिस फिरते हैं यहां से वहां बेचारों की तरह।।
ठीक से दिखता है ना देता है सुनाई कुछ बुढ़ापे में।
"उस्ताद" मचलता है दिल सदा मगर कुंवारों की तरह।।
@नलिन #उस्ताद
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