सांई कब रंगोगे तुम मेरा मन गेरुआ।
यूं तो मैंने वसन* देख लिया पहन गेरूआ।।
*कपड़ा
चढ़ते-उतरते,अर्श और फर्श आसमान के। आफताब* करता है उसकी परछन गेरुआ।।
*सूरज
वतन की खातिर जो अपनी देते हैं शहादत। यारों होता है उन सभी का तन-मन गेरुआ।।
सप्तलोकों को देखने की ताकत जो अता फरमाए।
तीसरी हमारी आंख का रंग भी है गहन गेरुआ।।
राधा-मीरा ने दुनिया जहां से बगावत करी। रग-रग में भरता इंकलाबी रसायन गेरुआ।।
दुआ मांगे तभी तो "उस्ताद"बार-बार रब से यही।
भूल कर वजूद वो अपना पहन नाचे मगन गेरुआ।।
@नलिन #उस्ताद
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