जानना तो चाहता है हर कोई राज अगले के बारे में।
ये अलग बात है बतियाता नहीं घुलमिल कर अपने बारे में।।
बहुत बड़ी है दुनिया भीतर की ही जो है फैली हुई।
पता ही नहीं हजार बातें जो छुपी रहती खुद के बारे में।।
अंगुली उठाकर पूरे जोश से गिनाता तो है दूसरों की गलतियां।
मगर क्यों तन जाती है वही अंगुलियां पूछने पर उसके बारे में।।
जंगल भटकता तो बहुत है कस्तूरी के लिए ताउम्र हिरन।
खुश्बू ये है भीतर की ही जानता कहां इसके बारे में।।
जाने कब बेचोगे खुद को औरों की तरह माल-असबाब के जैसे।
"उस्ताद"जी तुमने कुछ सीखा ही नहीं कभी भी इस फन के बारे में।।
@नलिन #उस्ताद
बहुत अच्छा लिखा सर जी आपने
ReplyDeleteजो भि लिखा इन सबके बारे में...
thanks for your comment
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