बजाओ ना कान्हा बांसुरी जो लेती चितचोर। बौरायी सी मैं विस्मृत हो रह जाती चितचोर।।
काम-धाम,व्यवहार जगत के जाते सारे छूट। उलबुली सी,धरे नखरे रह जाते,सुनो चितचोर।।
जनम जनम की बैरन मेरी सास ननद तुम जानो।
फिर भी आग लगाने और तुम आ जाते चितचोर।।
जब जब देख तुम्हें छुप जाती मैं कपाट की ओट।
बाॅह पकड़ कर गले लगाते तुम तो बड़े चितचोर।।
सुंदर श्याम अलकावलि पर अति शोभित मोर मुकुट।
आओ ना कभी गली हमारी ओ बांके चितचोर।।
श्याम नैन कजरारे मधुकर"नलिन"ललचावें।विरह अगन में रोज जलाए,अजब-गजब चितचोर।।
@नलिन #तारकेश
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