ये अजब शहर मेरी रवायतों(सुनी सुनाई बातें) का हिस्सा नहीं है।
यहां तो बेवजह कोई किसी को पूछता नहीं है।।
जाने कैसे-कैसे अजब किरदार में ढल रहा शहर का आदमी।
खुद ही फैला रहा प्रदूषण पर उसमें जीना चाहता नहीं है।।
खा रही धूल दादी की लोरियाॅ और खत- किताबत भूल गयी पीढीयाॅ।
बगैर दिल-ए-अजीज मोबाइल तो अब यहाॅ किसी की सांस चलती नहीं है।।
जाने किस बात की जल्दी में हर शख्स दौड़ता दिख रहा।
पहले आप की तहजीब तो अब कहीं भी दिखती नहीं है।।
जानते हैं सब तख़ल्लुस"उस्ताद"का खुद से चस्पा कर लिया।
वरना तो आलिम-फाजिल(विज्ञ-जन) तेरा कोई मैयार(कसौटी) ही नहीं है।।
@नलिन #उस्ताद
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