पाँव की महावर बन राधा का हो जाऊंगा।
सुबह शाम साँस-साँस बस एक राधे -श्याम
भाव-कुभाव उचार भव -सागर तर जाऊँगा।
रूप-राशि है अनूठी युगल सरकार की मेरे
देख भला मैं मंत्रमुग्ध कैसे न हो जाऊँगा।
चलता है उसका ही सिक्का सारे सप्तलोक मे
कीर्ति गाथा मैं निरंतर गाता उसकी जाऊँगा।
हर रूप में,हर रंग में रहता वो सभी के संग में
दिल से जो स्वीकार लूँ ,खुद वही हो जाऊँगा।
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