दिल लगा बैठे हैं हम तो उस ऐसे चश्मेनूर से
वज़ूद जिसका हर जगह पर दिखता हैआप से।
दिल को अच्छा लगा कि तुम चाहते हो दिल से
क्या करें मज़बूर हैं मगर हम भी अपने दिल से।
दुनियावी हकीकत से मुश्किल है बहुत उसकी डगर
इतना तो हम भी जानते हैं,झूठ नहीं कसम ईमान से।
आलस,कामचोरी की लत लग गयी हमें इस जमाने से
हर मर्ज़ का इलाज़ ढूँढते हैं महज़ एक अदद रिमोट से।
मंझे "उस्ताद" भी हैं पीछे उस्तादी में उसके आगे
पर कबूल ले शायद कभी,चल रहे इस उम्मीद से।
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