राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जो चाहसि उजिआर।।
भीतर,बाहर मन के हर कोने-कोने
उज्जवल,शुद्ध,निर्मलता को पाने
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
राम रतन को जिव्हा में धर कर
आलोकित कर ले सारा संसार
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
दिव्य चेतना को आधार बना कर
तन-मन तू प्रभु को अर्पित कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
सूर,चैतन्य,मीरा,तुलसी ने,खुद को एकाग्रचित्त कर
नित ध्याया हरि को जैसे,तू भी तो ध्यान लगाया कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जो चाहसि उजिआर।।
भीतर,बाहर मन के हर कोने-कोने
उज्जवल,शुद्ध,निर्मलता को पाने
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
राम रतन को जिव्हा में धर कर
आलोकित कर ले सारा संसार
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
दिव्य चेतना को आधार बना कर
तन-मन तू प्रभु को अर्पित कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
सूर,चैतन्य,मीरा,तुलसी ने,खुद को एकाग्रचित्त कर
नित ध्याया हरि को जैसे,तू भी तो ध्यान लगाया कर
राम-राम रट रसना,तू राम-राम रट बस।
राम रतन से बड़ा कोई धन नहीं. राम का नाम लेने से ही सारे पाप धुल जाते हैं. इसी महात्म का आप ने वर्णन किया है. अति सुन्दर !
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