एक फ़कीर को चाहना क्यों कर गुनाह हो गया
ये मेरा मज़हब भला क्यों कर बौना सा हो गया।
देश भारत मेरा था कभी सारी दुनिया का गुरु
शायद इसी रंग-ढंग से वो खानों में बँट गया।
वैसे तो एक फ़कीर को मढा जो जेवरात से
जीना उसका इस जहाँ में दूभर बना गया।
वो हर हाल खुश था अपनी टाट और खपरैल से
बेवजह मसला उसे आँख का काँटा बना गया।
द्वैत- अद्वैत से परे कैसा भला ये अहम का बोल
रजअतपसन्द*मगर क्यों कर "उस्ताद"हो गया।
*जिसे तरक्कीपसंद विचार न आते हों
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