सार्थक नवसृजन सहज,सरल भला कहां होता है।
वो तो निरंतर असीम धैर्य,साहस,संकल्प मांगता है।।
जितना व्यापक हित कामना का उसका व्यास होता है। उसी अनुरूप वह आपसे आपका बलिदान मांगता है।।
हमें तो बस उसी भांति मन मस्तिष्क साधना होता है।
हर घड़ी,हर सांस जो भी तदनुरूप वो हमसे मांगता है।।
प्रत्येक जीव में एक सिद्धहस्त कलाकार छुपा होता है। एकमात्र बस वही तो हमारा अस्तित्व हमसे मांगता है।।
हमारी कामना का संकल्प बीज ही तब वटवृक्ष होता है। जिसके हेतु आत्मा सात्विक समर्पण का भाव मांगता है।।
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