Wednesday 9 August 2023

558:ग़ज़ल:रह जाएंगी इतिहास बनकर

कहो बेबाक जरूर मगर सुन भी तो लो यार की।
ऐसी भी भला बात क्या तेरे बेवजह अहंकार की।।

सोने,चांदी की दीवारों के घर में रहे हो माना तुम जन्म से। 
मगर हद है अब तलक भी छूटी नहीं आदत भ्रष्टाचार की।

उँगलियां उठाना तो आसान है कभी भी किसी पर तेरा।
देखी मगर क्या तूने कभी तस्वीर अपने ही दरबार की।।

जो कुछ भी तुम कह दो बस वही असल कानून है होता। आँखों में है पट्टी पर बात सुनते ही हो क्यों चाटुकार की।।

"उस्ताद" जान लो होने लगा है अब उजाला नई भोर का।
रह जाएंगी बातें तेरी इतिहास बनकर सारी अंधकार की।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

No comments:

Post a Comment