बहुत बहुत बधाई के साथ सभी देशवासियों को
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दूरीयां कितनी भी बड़ी हों,कभी भी बड़ी नहीं होती।
मिट जाते हैं सारे फासले,हो मगर मोहब्बत सच्ची।।
मेरे महबूब तुझसे मिलने की बेकरारी है इतनी जा बढ़ी।
रकीब आ गले लगाए उससे पहले मैंने नकाब उठा दी।।
चांद मेरे हमनशीं,मेरे हमदम,तुझसे कहाँ कुछ भी छुपा।
मुझे कभी तेरी ये,नफासत भरी पर्दादारी भली न लगी।।
राज क्या है जो इतना करीब आकर भी ओझल हो जाए। दूसरों से भला क्यों सुनूं,अपनी जुबानी तू बात तो सही।।
"उस्ताद" ये आंख-मिचौली,अब तो बंद कर दे खुदा के वास्ते।
बेइंतिहा मोहब्बत को न ठुकरा इस बार,तुझे कसम है मेरी।।
देश एवं वैज्ञानिकों की बहुत बहुत बधाई👍👍🙏
ReplyDeleteआपकी रचना के लिए भी बहुत बहुत बधाई।👌👌🙏🙏
बहुत बहुत बधाई
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