Wednesday 16 August 2023

562: ग़ज़ल: बस खुशबू तेरी

लफ्ज जुबां पर हैं हमारे मगर निकलते नहीं। 
दिल की ये उमस यारब बड़ा बेचैन कर रही।।

जब से तेरे जलवों की चर्चा सुनी है आशिकों से।
हरेक सांस तुझे देखने की हसरत कुलांचे मारती।।

यूँ तो हम रहे हैं दुनियावी चक्करों में सदा से।
बता फिर खबर मिलती तो कैसे तेरी मिलती।।

बरसे जो बादल खेत-खलिहान सब झूम गाने लगे।
सावन के अंधे को मगर कब बरखा की दरकार थी।।

समंदर,चांद,सितारे,पहाड़,झरने,नदी,परिन्दे।
खींचते हैं "उस्ताद" मुझे बस खुशबू से तेरी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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