मयकदे जो हम गए थे गम अपना भूलाने।
लो याद वो और आ गए साकी के बहाने।।
सबके लबों पर तो बस उनका ही जिक्र था।
अब कहो हम कितना छुपाते,कितना बताते।।
यूँ इस कदर थे हम हलकान उनकी बेवफाई से।
एक दो नहीं,जाम जाने कितने,हलक से उतारे।।
बादलों के मिजाज आवारा,देखिए,समझिए क्या?
जैसी चली हवा,धुन वो तो उसकी ही नाचते दिखे।।
"उस्ताद" हमें तो नशा अब ऐरा-गैरा चढ़ता ही नहीं।
बस निगाहों से उनकी जो पिया वही ता-उम्र पीते रहे।।
वाह हजूर
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