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मोटी कोहरे से भरी रजाई ले खुर्शीद* है सो गया।*सूर्य
कमबख्त उठता ही नहीं जाने क्या इसे हो गया।।
यूँ सर्द मौसम है थोड़ी बहुत तो चलती ही है मगर।
शायद कल रात कुछ ज्यादा ही चढ़ाकर खो गया।।
आपसी रिश्तो में जब भी तीसरे को शामिल किया।
देखो वो आकर हमारे बीच फूट के बीज बो गया।।
झिड़कियों,नसीहतों,उलाहनों से उफन रहा था।
जो हमदर्द बन गले लगा लिया मैंने तो रो गया।।
बताते थे "उस्ताद" तुम बहुत बड़ा ज़हीन खुद को।
लो आज अदना सा शागिर्द ठाठ से रील धो गया।।
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