अरुण "नलिन" अधर कृष्ण ने जब मधुर वेणु तान छेड़ी। दौड़ती-भागती आंचल फैलाए राधा सन्मुख हो गई खड़ी।।
अप्रतिम प्रेम सुधा-रस फिर तो क्या था बरसता रहा।
ब्रम्हांड के पोर-पोर नवल कौतुक की लग गई झड़ी।।
कजरारे चितवन आमने-सामने गुत्थम-गुत्था लड़ने लगे। बांवरी वृषभानसुता मनमोहन पर मगर अति भारी पड़ी।।
हास-परिहास,नोकझोंक का ये सिलसिला जो चला।
कौन जाने कब तक ,जब थम गई काल की ही घड़ी।।
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