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किसी और की जरूरत नहीं रहती यारा अब तो।
खुद से ही हूँ हजामत अपनी बना लेता अब तो।।
तारीखें जो बदल जाती हैं खुद से उनको बदलकर।
सोचता हूँ यही अक्सर हो गया मैं मसीहा अब तो।।
जबसे खुद को एक दूरी बना जांचने की सोची है।
कसम से सौ नुस्ख खुद में ही दिखने लगा अब तो।।
वही चेहरा हर रोज जाने क्यों मुझे दिखाता है आईना।
तंग इससे आ गया हूँ सो बदलना तो पड़ेगा अब तो।।
दिन में तो मसरूफियत सबको ही रहती है मगर।
"उस्ताद" रातों में भी कौन है भला सोता अब तो।।
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