जैसे-जैसे हम खुद को जानते हैं।
वैसे-वैसे रब को पहचानते हैं।।
छुपे नहीं रहते हुजूर फिर तो हमसे।
धीरे ही सही सामने आने लगते हैं।।
हां हर घड़ी आईना ले डोलना पड़ता हमें।
जांच उसकी तो तन-मन किया करते हैं।।
दरअसल खुद की जांच से आती है पाकीजगी।
होती है गर्द साफ तो अक्स खालिस उभरते हैं।।
मगर यह कवायद तो ता-उम्र की प्यारे।
चूक हो अगर बड़े-बड़े भंवर डूबते हैं।।
यूँ नचाता है वही कठपुतली सा हमें। खुद को पर भूल से खुदा समझते हैं।।
ये अलग बात रंग में उसके रंगने के बाद। इनायते करम से उस्ताद बन सकते हैं।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday 19 June 2019
170-गजल
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