धरती का तन-मन खिल गया।
बरखा का प्यार जो मिल गया।।
नजरों की उनकी इनायत देखिए।
दिल का जख्म गहरा सिल गया।।
सौंधी महक से गमक उठा जहां सारा।
तन-मन जो आज हिल-मिल गया।।खुसूसियत*पर बेवजह का दाग।*व्यक्तित्व
गया तो सही पर बमुश्किल गया।।
दोस्त था या था वो रकीब*मेरा।*शत्रु
मुखौटा उतारा तो मैं हिल गया।।
लो सॉवरे का जब से दीदार हुआ।
"उस्ताद"का तो अपना दिल गया।।
@नलिन#उस्ताद
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