This poem I addressed to my niece Poshita when she was forcing me to join her in France for big event.and visa was cancelled.
कतई शौक नहीं है आने का तेरे शहर में।
तू है वरना तो कुछ खास नहीं तेरे शहर में।।
होंगी मानता हूं बुलंद इमारतें और चमचमाती सड़कें।
देगा ना मगर कोई सुकून मुझे भीतर से तेरे शहर में।।
माना घर है जहां मेरा वहां बेवजह की मशक्कत हजार हैं।
लेकिन जानता हूं गुजारा नहीं आरामतलब तेरे शहर में।।
अपने शहर में चुपचाप भी रहूं तो काम चल जाएगा।
बोलूंगा भी तो कौन समझेगा मुझे तेरे शहर में।।
होने शामिल कोर्ट मैरिज में तेरी और प्रिंस चार्ल्स की।
आऊंगा ये वादा है सपने या हकीकत में तेरे शहर में।।
ठेंगे में जाए तेरा शहर और उसका वीजा परवाह नहीं।
यूॅ पहचान के"उस्ताद"को खुद मेयर बुलाएगा तेरे शहर में।।
@नलिन #उस्ताद
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