कबूतर कहां अब कहीं भी नजर आ रहे। चारों तरफ तो अब गिद्ध ही मंडरा रहे।।
सांप और नेवले में हो गई दोस्ती।
रंगे सियार सब गंगा नहा कर आ रहे।।
अजब मजाक हो रहा अब तो आम जनता के साथ।
साईकिल स्टैंड वाले मरसिडीज में आ रहे।।
हाथों में पहन कर बघनखे खुलेआम अब तो। दस्त-ए-पाक मिलाने वो बहुत करीब आ रहे।।
दूर करने सियासत की गंदगी जो झाड़ू लाए थे।
स्याह चेहरे छुपाते अब तो वो ही नजर आ रहे।।
होने लगा खैरमकदम महफिल में हर तरफ। सुनाने जो नई ग़ज़ल अब"उस्ताद"आ रहे।।
@नलिन #उस्ताद
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