ये हंसी वादियां गजब के नजारे फ्रांस के।
शरमा रही है अमरावती*,आगे फ्रांस के।
*(इन्द्र की राजधानी)
यकीं तो नहीं था वीजा दोबारा रिजेक्ट होने के चलते।
खुदा के फजल से बुला लिया हमें मेयर ने खुद फ्रांस के।।
यूं तो उसने दिया था कभी संकेत मेरी पहली ही ग़ज़ल में।
पर सपना सा लग रहा अब तलक घूमना शहरों में फ्रांस के।।
हल्की-हल्की बरसात कर रही थी खैरमकदम हमारा।
दिखी हर तरफ रास्ते में हरियाली गजब की फ्रांस के।।
मंदिर की घंटी सी गूंजती है चीयसॆ की हर घड़ी आवाज।
नदी शराब की इठलाती बहे हर गली कूचे में फ्रांस के।।
आफताब*भी नशे में है तो उसे होश कहां होगा भला।*(सूरज)
डोलता है सुबह से रात देर तक गलियों में फ्रांस के।।(सूयॆ देर रात अस्त होता है)
"मुज्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम"* जर्रा-जर्रा बिखरा है यहां।*(भोग विलास के बेहतरीन उदाहरण)
पशोपेश पड़ा"उस्ताद"लिखे कितने जलवे फ्रांस के।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment