ख्वाबों को भी है रश्क हो रहा हकीकत के रंग देख कर ।
काटते खुद को चुटकियाॅ गजब के फैले अजूबे देखकर।
मिजाज-ए-मुल्क से मेरे जमीं आसमां का यहां फासला।
होगा ना कौन भला मदहोश नजारा यहां का देखकर।।
खुशगवार मौसम,हसीन चेहरे मुस्कुराते मिलते।
जोश-ए-जज्बात तो भर जाता है बस यही देखकर।।
एक ताजगी अलग है खुशबू सी बिखरी चारों तरफ।
मचल रहा है दिल-ए-नादां आलम यहां का देखकर।।
सुर्खाब के पर"उस्ताद"जान रहा उगते हैं कैसे।
इनायत बेहिसाब बरसती खुद पर खुदा की देख कर।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment