कुछ भी हो दरिया में चुपचाप तुमको बहना हुजूर अब तो सीखना ही होगा।
बहुत बहा पानी, बर्बाद हुआ मौज को तुम्हारी अब तो सीखना ही होगा।।
अब आप ही कहो कब तक फूल पर हमारे बरसाओगे पत्थर।
अपने नापाक इरादों को रोकना अब तो सीखना ही होगा।।
ऐसा तो कतई नहीं कि हमें नापसंद हो हर जाती,हर रंग के फूल।
हाॅ सावन के अंधों को आंखों का इलाज अब तो सीखना ही होगा।।
जो माटी की सौंधी खुशबू में घोलते रहे हैं जहर अपने फायदे को।
ऐसी बेगैरत हवा का गला घोंटना अब तो सीखना ही होगा।।
अवार्ड वापसी में कौन,कब,कहां,किस-किस मौके पर रहा।
पासा पलटना वतन की खातिर अब तो सीखना ही होगा।।
पत्थरबाजों से निपट लेंगे बावजूद मानविधकारों की आड़ लिए आलिमों से।
हाॅ इन चिकने-चुपड़े रंगे सियारों को आईना दिखाना अब तो सीखना ही होगा।।
दलित,मुसलमाॅ,आरक्षित,महिला काडॆ और ढोयेंगे जाने किस सदी तक।
मिटाना इन्हें नई इबारत विकास की गढने अब तो सीखना ही होगा।।
जाते रहे हो जो सैलाब बन मय्यत पर दहशतगर्दों की।
वंदे-मातरम को"उस्ताद"नाक रगड़ अब तो सीखना ही होगा।।
@नलिन #उस्ताद
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