पकड़ के मेरा हाथ उसने बीच भंवर छोड़ दिया।
वो ही सहारा एक था पर बेसहारा छोड़ दिया।।
बहुत पी ली मय अब और कितनी पी लें भला।
दिखाना असर अपना नशे ने भी छोड़ दिया।।
मंदिर,मस्जिद,चचॆ जाते भला क्यों हम कहो।
खुदा ने भी जब से साथ अपना छोड़ दिया।।
रास्ते अलग-अलग भटकाते हैं अपनी तरह से।
अब तो ये देख हमने घर से निकलना छोड़ दिया।
इतनी अकड़, गुरूर और शोखी कहो किस बात की।
इंसान हो कर भला क्यों इंसानियत को छोड़ दिया।।
हर तरफ रहा अहले करम उसका बिखरा हुआ।
जाने क्यों भला सजदे में झुकना छोड़ दिया।।
अपने में मगरूर हो और पर इल्जाम ठोकता रहा।
नतीजा ये हुआ हर किसी ने तन्हा उसको छोड़ दिया।।
प्यार,दोस्ती,नेकी किस युग की जाने बात रही।
अब किसी से "उस्ताद" हमने बोलना ही छोड़ दिया।।
@नलिन #उस्ताद
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